गुरुदेव ने जब सुदर्शन क्रिया सिखाना शुरू किया, तो वह देवराहा बाबा और कोड़ी स्वामी से सलाह लेने गए। देवराहा बाबाजी गंगा के पास एक छोटी सी कुटिया में रहते थे और उस समय लगभग 300 साल के थे। गुरुदेव रात में वहाँ पहुँचे। देवराहा बाबा मुस्कुराते हुए उन्हें स्वागत करने आए और कहा, “मुझे खुशी है कि तुम आए हो।” उन्होंने गुरुदेव को खाने के लिए एक खरबूजा दिया और कहा, “पानी बह रहा है। उसे बहना ही है। अगर वह ठहर गया, तो वह सड़ जाएगा। इसलिए सत्संग को बहते रहना चाहिए।
सत्संग वह शक्ति है जो दुनिया में कृपा को बहने देती है। दुनिया को सड़ने से बचाने के लिए सत्संग आवश्यक है। तुम्हें सत्संग को पूरे विश्व में फैलाना है।” गुरुदेव को प्रश्न पूछने की ज़रूरत नहीं पड़ी और फिर भी उन्हें उत्तर मिल गया।
बाद में जब गुरुजी दूसरे संत, कोड़ी स्वामीजी, से मिलने गए, जो उस समय लगभग 450 साल के थे। जब गुरुजी ने कोड़ी स्वामीजी से कुछ ज्ञान माँगा, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “सारा ज्ञान पहले से ही वहाँ है। अगर शिव खुद मुझसे ज्ञान माँगने आएं, तो मैं उन्हें कौन सा ज्ञान दे सकता हूँ।”